मकर संक्रांति पर्व: परंपराएं और मान्यताएं

Khabarnama Desk : मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के समय मनाया जाता है, जो 14 जनवरी 2025 को होगा। मकर संक्रांति का पर्व ना केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी खास है। इसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे उत्तरायण, पोंगल, माघ बिहू और खिचड़ी।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के मकर राशि में गोचर करने के कारण मनाया जाता है। यह दिन खास तौर पर पुण्यकारी माना जाता है, क्योंकि इस दिन सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ने की शुरुआत होती है। इसके साथ ही, खरमास का महीना समाप्त हो जाता है, जो विवाह और शुभ कार्यों के लिए अच्छा समय माना जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति का पर्व भगवान सूर्य देव को समर्पित होता है। इस दिन सूरज के उत्तरायण होने से दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी। इसे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्रगति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

तिल और गुड़ का सेवन और दान

मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का सेवन विशेष महत्व रखता है। तिल का सेवन शरीर को गर्मी देता है, जो सर्दी के मौसम में अत्यंत लाभकारी होता है। इसके अलावा, गुड़ भी सेहत के लिए फायदेमंद होता है। तिल और गुड़ को एक साथ खाने से शरीर की शुद्धि होती है और इससे हृदय और पेट संबंधी बीमारियों से भी राहत मिलती है।

मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का दान भी किया जाता है। यह दान कड़वाहट को मिठास में बदलने का प्रतीक माना जाता है। जब व्यक्ति तिल और गुड़ दान करता है, तो उसे मानसिक शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह संकेत भी है कि हमें अपने जीवन में मीठे रिश्ते और प्रेम बढ़ाने चाहिए।

पतंगबाजी: एक खास परंपरा

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा भी है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम ने मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाई थी, जो इंद्रलोक में चली गई थी। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज भी लोग इस दिन पतंगबाजी का आनंद लेते हैं।

पतंग उड़ाना न केवल एक मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह सूर्य देव की पूजा का भी एक तरीका माना जाता है। पतंग उड़ाने से हमें आत्मविश्वास और स्वतंत्रता का अहसास होता है। साथ ही, यह हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा भी देता है।

दान और पुण्य कार्य

मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। लोग इस दिन गरीबों को तिल, गुड़, पुराने कपड़े, अनाज, बर्तन आदि दान करते हैं। इसे पुण्य का कार्य माना जाता है। मकर संक्रांति का दिन दान करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन दान से बहुत अधिक पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

दान के रूप में दी गई सामग्री गरीबों और जरूरतमंदों के लिए बहुत उपयोगी होती है, और इसे देने से व्यक्ति को मानसिक संतोष और आंतरिक खुशी मिलती है। इसके अलावा, यह समाज में दया और प्रेम की भावना फैलाने का भी एक माध्यम है।

गंगा स्नान और पूजा

मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और आत्मशुद्धि होती है। लोग इस दिन गंगा घाटों पर स्नान करते हैं, विशेष रूप से प्रयागराज, हरिद्वार, और वाराणसी में बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।

इसके अलावा, मकर संक्रांति के दिन विशेष पूजा का आयोजन भी किया जाता है। इस दिन पूजा करने से व्यक्ति की समृद्धि और सुख-शांति में वृद्धि होती है। लोग सूर्य देव की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए संकल्प लेते हैं।

पोंगल और अन्य क्षेत्रीय पर्व

मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में मनाया जाता है, जो चार दिन तक चलने वाला पर्व है। पोंगल के दौरान, लोग नए धान के साथ पोंगल पकाते हैं और सूर्य देव को अर्पित करते हैं। इसी प्रकार, असम में इसे माघ बिहू, पंजाब में लोहड़ी और बिहार में खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है। इन सभी पर्वों का उद्देश्य सूर्य देव की पूजा करना और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना है।

 

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